Monday, July 6, 2009

आज की व्यवस्था और मैं .....

आज मेरे ऑफिस में मासिक कार्य समीक्षा बैठक थी , जिसमें हमारे विभाग के प्रदेश के मुखिया हम बेजुबानों से पूछते हैं कि आपको कार्य करनें में कोई तकलीफ तो नहीं ! , हम क्या कह सकते हैं ? यदि जुबां होती तो कहते कि,आप जैसे ही बड़े अधिकारीयों से फ़ोन पर बात करने कि धमकियाँ न मिलती तो कोई तकलीफ नहीं हैं। दो घंटो का समय मानो पहाड़ होता जा रहा था जिसके मध्य में मिली चाय कि चुस्कियां भी कड़वी लग रही थी। परंतु मीटिंग हॉल से निकलते समयहम सभी बेजुबान इस तरह वाचाल हो गए , गर्दन भौवो कि तरह तनी हुई थी जैसे पानीपत का युद्घ हमही जीत के आ रहे हैं। इस व्यवस्था कि कड़ी होते हुए भी मेरे मन में हमेशा एक बात रहती हैं कि, शायद किसी ने ठीक ही कहा हैं -
" आपको सज़दा करून मुमकिन नही ये जीते जी ,
आदमी होता हैं सबकुछ ,पर ...खुदा होता नहीं। "

2 comments:

  1. जो झुकते नहीं वे टूट जाया करते हैं। आप की बात से लगता है कि आप सरकारी विभाग में हैं। देखिए, पब्लिक डील में यह लगा रहता है। इसको job hazard कहते हैं। अपना काम ईमानदारी सि करिए और घर परिवार पर ध्यान दीजिए। हर सरकारी आदमी कैबिनेट सीक्रेट्री तो नहीं बनता।
    ऐसे ही सीधा सादा लिखते रहिए। मन को शुकून मिलता है। नहीं तो ब्लॉग जगत में हँकवैया बहुते हैं।

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  2. वाह कितने लोगों की आह समां ली है अपने इन दो पंक्तियों में !

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